दोस्तों बवासीर अर्थात Piles (Hemorrhoids) एक ऐसी बीमारी है जिसका दर्द ना तो बताते बनता है और ना ही छुपाते बनता है।
ऐसी हालत में मरीज चिंता और अवसाद से भी ग्रसित हो जाता है। अधिकांश मामलों में यह पाया गया है की स्त्रियां बवासीर के मर्ज को बताने में शर्माती है जिसके कारण यह बीमारी बहुत बढ़ जाती है और इलाज में काफी मुश्किल होती है।
लेकिन दोस्तों इसमें शर्माने वाली कोई बात नहीं है यह अन्य बीमारियों की तरह ही एक सामान्य बीमारी जिसका पूरा इलाज उपलब्ध है।
बवासीर का इलाज जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना ही अच्छा होता है और यह जल्द से जल्द ठीक भी हो जाती है। किंतु अगर इलाज में देरी की जाए तो गंभीर समस्या पैदा हो जाती है और इस बीमारी को ठीक होने में लंबा वक्त लग सकता है। साथ ही साथ खर्च भी अधिक बढ़ जाता है।
जानिए आखिर क्या है बवासीर :
दोस्तों बवासीर दो प्रकार की होती है खूनी बवासीर और बादी बवासीर-
1- बादी बवासीर :
दोस्तों बादी बवासीर में मरीज को लगातार कब्ज की शिकायत बनी रहती है। मल त्यागने में मरीज को अत्यधिक जोर लगाना पड़ता है। साथ ही साथ मरीज का पेट कभी भी सही नहीं रहता है और उसका पाचन हमेशा बिगड़ा रहता है।
2-खूनी बवासीर :
दोस्तों खूनी बवासीर में मरीज को मल त्याग के समय अत्यधिक पीड़ा में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। साथ ही साथ मल के साथ खून भी गिरने लगता है। खून ज्यादा गिरने से रोगी का चेहरा पीला पड़ने लगता है और उसे कमजोरी भी महसूस होने लगती है।
बवासीर के चरण (Degrees) :
मुख्य रूप से बवासीर के तीन चरण होते हैं, प्रथम द्वितीय और तृतीय-
प्रथम चरण में बवासीर के मरीज को इस मर्ज का पता नहीं लग पाता है। कभी कभार गुदा द्वार में तेज दर्द होता है जो थोड़ी देर में सामान्य हो जाता है।
द्वितीय चरण में परेशानी थोड़ी बढ़ जाती है। इस अवस्था में बवासीर के मस्से बड़े होने लगते हैं। मिर्च मसाला आदि ज्यादा खाने से इन में सूजन आने लगती है। साथ ही साथ मलद्वार में रुकावट पैदा हो जाती है और मल त्यागने में परेशानी शुरू हो जाती है।
तृतीय चरण में बवासीर के मस्से बाहर की ओर लटकने लगते हैं और इनमें जोरो की खुजली मचने लगती है। कभी-कभी तेज जलन का भी सामना करना पड़ जाता है। मल त्याग के समय मस्से पूरी तरह से बाहर आ जाते हैं और अंत में सौच के बाद मरीज को इन्हें उंगली से अंदर करना पड़ता है।
आइए जानते हैं बवासीर के कारण :
- कब्ज
जी हां दोस्तों बवासीर का मुख्य कारण है पेट में लंबे समय तक कब्ज का बने रहना। पेट में कब्ज पैदा होने से मल त्यागने में कठिनाई होती है और रोगी को जोर लगाना पड़ता है , जोर लगाने से गुदाद्वार की नसों पर बाहर की ओर दबाव पड़ता है, बस यहीं से शुरुआत होती है बवासीर की।
- गलत खानपान
जी हां दोस्तों आजकल फास्ट फूड जैसे बर्गर, चाऊमीन, पिज़्ज़ा, डोसा, समोसा आदि का चलन बहुत जोरों शोरों पर है। यह फास्टट फूड कब्ज पैदा करने और उसके बाद बवासीर पैदा करने में बहुत सहायक होते हैं। फास्ट फूड का अधिक प्रयोग कि किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को वर्ष भर के अंदर बवासीर का मरीज बना सकता है।
- गर्भावस्था के कारण
दोस्तों अक्सर यह देखा गया है की महिलाओं में गर्भावस्था के 7 वें से 9 वें माह के दौरान उनमें भी बवासीर की समस्या पैदा हो जाती है। किंतु अधिकांश मामलों में प्रसव के बाद यह स्वता ही समाप्त हो जाती है।
- बवासीर के आनुवांशिक कारण
दोस्तों कुछ मामलों में यह भी देखा गया है कि जिस परिवार में किसी सदस्य को जैसे पापा, दादा, चाचा या भाई आदि को बवासीर की बीमारी है तो अन्य सदस्यों को भी यह मर्ज होने की संभावना रहती है।
- अधिक गुदा मैथुन
दोस्तों एक शोध में यह बात सामने आई है कि जो लोग अधिक गुदा मैथुन ( Anal sex ) करते हैं उनमें बवासीर होने की संभावना अत्यधिक बढ़ जाती है। दोस्तों यह एक अप्राकृतिक कृत्य है अतः इससे दूर ही रहना चाहिए।
बवासीर की जांच कैसे की जाती है :
दोस्तों थर्ड स्टेज की बवासीर अर्थात पाइल्स की जांच डॉक्टर देख कर के व अपने हाथों से छूकर करते हैं।लेकिन अगर बवासीर फर्स्ट या सेकंड स्टेज की है तो इसके लिए डॉक्टर एक विशेष उपकरण आपके गुदाद्वार में प्रवेश कराकर अंदर के मस्से जिन्हें भगंदर (Hemorrhoids) कहते हैं उन्हें आसानी से देख लेते हैं।
आइए जानते हैं बवासीर का इलाज कैसे किया जाता है :
दोस्तों बवासीर के इलाज की बहुत सी विधियां हैं लेकिन इन सब में क्षार सूत्र विधि को सर्वोत्तम माना गया है। आइए जानते हैं विस्तार पूर्वक-
1-क्षार सूत्र विधि :
दोस्तों बवासीर के इलाज की यह विधि सर्वोत्तम विधि है। यहां तक की Laser Treatment से भी आसान व सुविधाजनक है। इसमें रोगी को बेहोश करने की भी जरूरत नहीं होती और साथ ही साथ दिया पीड़ादायक भी नहीं होती।
इसमें रोगी तुरंत घर वापस जा सकते हैं। इस विधि में डॉक्टर एक विशेष उपकरण की सहायता से रोगी के मस्सों पर एक धागा बांधता है जो एक विशेष रसायन में संश्लेषित कर सुखाया गया होता है।
यह रसायन एक विशेष किस्म का क्षार होता है इसकी क्षारीय प्रकृति व धागे के दबाव से मस्से कट कर गिर जाते हैं और मरीज को पता भी नहीं चलता। इस पूरी प्रक्रिया में 1 माह तक का समय लग सकता है यह निर्भर करता है कि मस्सों की संख्या व आकार कैसा है।
2-लेजर विधि द्वारा बवासीर का इलाज :
दोस्तों इस विधि में बवासीर के मस्सों को एक विशेष लेजर उपकरण द्वारा मरीज को बेहोश करके जलाया जाता है। यह पाया गया है कि इस विधि से इलाज करवाने पर भी मस्से दोबारा उभर आते हैं। साथ ही साथ या विधि अत्यधिक खर्चीली भी है।
4- साधारण आप्रेशन द्वारा बवासीर का इलाज :
दोस्तों इस विधि में बवासीर के मस्सों को सीधे तौर पर काट करके निकाल दिया जाता है। यह विधि लेजर विधि से सस्ती है किंतु इस विधि से इलाज कराने का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि मरीज का गुदाद्वार पर नियंत्रण कमजोर पड़ जाता है और उसे मल रोकने में परेशानी होती है। कई बार मरीज कपड़ों में ही मल त्याग कर बैठता है।
4- बवासीर का देसी या घरेलू इलाज :
बवासीर के कई देसी व घरेलू इलाज के नुस्खे भी हैं किंतु इनकी सफलता इनकी सफलता मात्र 50% तक देखी गई है। बवासीर के सुरुआती चरण में इन नुस्खों का प्रयोग करके बवासीर से बचा जा सकता है किंतु यदि एक बार मस्से बाहर की ओर लटक गए तो देसी इलाज विफल हो जाते हैं। देसी व घरेलू इलाज के नुस्खों का परिणाम भिन्न-भिन्न व्यक्तियों पर भिन्न-भिन्न होते देखे गए हैं।
बवासीर के इलाज के दौरान सावधानियां और खानपान :
- बवासीर के मरीज को इलाज के दौरान मिर्च-मसालों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर देना चाहिए।
- बवासीर के मरीज को मांस, मछली, अंडे जैसे गर्म खाद्य पदार्थों का त्याग करना चाहिए।
- बवासीर के मस्सों में खुजली होने पर उन में देसी घी लगाने से बहुत राहत मिलती है और खुजली से तुरंत छुटकारा मिलता है।
- मट्ठा या छाछ में भुना हुआ जीरा मिलाकर पीने से बवासीर में चमत्कारी लाभ मिलता है वह मस्सों की सूजन समाप्त हो जाती है।
- बवासीर के मरीज को दिन भर में 6 से 8 लीटर तक पानी पीना चाहिए जिससे शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल सकें।
- खाली पेट चने या जौ की दलिया का सेवन करना चाहिए ऐसा करने से फाइबर की भरपूर मात्रा शरीर में जाएगी और कब्ज नहीं पैदा होगी।
- सुबह खाली पेट रात को भिगाए हुए किसमिस खाने से भी बवासीर में चमत्कारी लाभ मिलता है।
- भोजन में सलाद की मात्रा अधिक रखें और ध्यान रखें कि सलाद पहले खाएं और भोजन बाद में ग्रहण करें।
- भोजन में शुद्ध देसी घी का प्रयोग अवश्य करें इससे भोजन में चिकनाई आएगी और भोजन आसानी से आंतों से पास होगा।
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